माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख 

-Allama Iqbal

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ 

-Allama Iqbal

दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो

-Allama Iqbal

हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़ 

-Allama Iqbal

सौ सौ उमीदें बंधती है इक इक निगाह पर मुझ को न ऐसे प्यार से देखा करे कोई 

-Allama Iqbal

भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ

-Allama Iqbal

मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या ग़र्क़ होने से कि जिन को डूबना है डूब जाते हैं सफ़ीनों में

-Allama Iqbal

अक़्ल अय्यार है सौ भेस बदल लेती है इश्क़ बेचारा न ज़ाहिद है न मुल्ला न हकीम 

-Allama Iqbal

फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है 

-Allama Iqbal

ढूँडता फिरता हूँ मैं 'इक़बाल' अपने आप को आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं

-Allama Iqbal