इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया वर्ना हम भी आदमी थे काम के

-Mirza Ghalib

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

-Mirza Ghalib

हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद जो नहीं जानते वफ़ा क्या है 

-Mirza Ghalib

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक 

-Mirza Ghalib

कब वो सुनता है कहानी मेरी और फिर वो भी ज़बानी मेरी 

-Mirza Ghalib

मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ काश पूछो कि मुद्दआ क्या है

-Mirza Ghalib

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं

-Mirza Ghalib

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है

-Mirza Ghalib

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले 

-Mirza Ghalib

हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक 

-Mirza Ghalib