हम बोलतानी:- उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के छोटे से गांव भठही बुजुर्ग से निकलकर पंकज शुक्ला ने सोशल मीडिया पर भोजपुरी भाषा की पहचान को नया आयाम दिया है। इंस्टाग्राम पर “हम बोलतानी” नाम से मशहूर उनके हैंडल ने प्रवासियों की भावनाओं, गांव की यादों और पारिवारिक रिश्तों की गहराइयों को अभिव्यक्ति दी है।
‘हम बोलतानी‘ पे पंकज के वीडियो केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन बन चुके हैं। भोजपुरी भाषा, जिसे अब तक मुख्य रूप से हास्य और फिल्मी गानों तक सीमित माना जाता था, उसे उन्होंने संवेदनाओं और सामाजिक मुद्दों का माध्यम बना दिया। उनके कंटेंट में परदेस में रहने वाले लाखों लोगों की तन्हाई, मां-बाप का बुढ़ापा और मिट्टी से जुड़े रिश्तों की सच्चाई झलकती है।
हम बोलतानी‘ के जरिए पंकज ने न केवल भोजपुरी समाज को जोड़ा, बल्कि इस भाषा के प्रति एक नई संवेदनशीलता भी पैदा की। उनके वीडियोज को लाखों व्यूज मिलते हैं, और उनके फॉलोअर्स में आम लोगों से लेकर राजनीतिक और सामाजिक हस्तियां भी शामिल हैं। उनकी इस अनोखी पहल ने साबित कर दिया कि भाषा केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि भावनाओं का सेतु भी हो सकती है।
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पंकज शुक्ला एक्सक्लूसिव

हमनें ‘हम बोलतानी‘ के पंकज शुक्ल से बातचित की और उनके विजन को जानने का प्रयास किया, और बहुत सारे पहलुओं पे बात की तो उनका क्या जवाब था, पढ़ें :
Ques:- पंकज जी ऐसी क्या बातें रहीं जो आपको इतना यूनिक कंटेंट बनाने के लिए प्रेरित कीं ?
पंकज :- मेरा बचपन हॉस्टल में गुजरा फिर दिल्ली पढ़ाई के लिए आ गया। शुरुआती दौर में परिवार और गाँव में बहुत कम रहना हुआ जिसके वजह से बहुत सी भावनाएं अंदर ही रह गई। जब भी दोस्त से बात करता था तो यही बोलता कि “यार मम्मी पापा रोज़ बूढ़े हो रहें और उन्हें साल में छुट्टियों में देख पाता हूँ।”
फिर सोचा ये जज़्बात तो मेरे जैसे लाखों परदेसी, जो गाँव घर से दूर शहर में हैं उनकी भी भावनाएं होंगी।
फिर मैंने ‘हम बोलतानी‘ पेज शुरू किया। पलायन और विछोह के दर्द को..नारी विमर्श की अनछुए पहलू को..बात उन लड़कों की जो रोजगार और रोटी के चक्कर में अपनी जवानी खपा दिए। फिर क्या था ! भावनाओं को शब्दों में पिरो कर बोलने लगा। पहले वीडियो यूट्यूब पे डालता था फिर धीरे धीरे इंस्टा पे ‘हम बोलतानी‘ की शुरुआत की और छोटी – छोटी वीडियो पोस्ट करने लगा। लोगों को लगने लगा कि ये कौन है जो मेरी ही अंदर की बात बोल रहा है।
मैं अपना नाम और तस्वीरें गोपनीय रखता था ताकि ये कोई भी व्यक्ति हो सकता है किसी का भाई, बेटा, नाती। और लोग जुड़ने लगे विदेशों से मैसेज आने लगे। लोग दिल से जुड़ गए। आज हर वीडियो का व्यूज लाखों में जाता है। बहुत से मिलियन में भी है।
इस सफर में बहुत से प्रतिष्ठित लोग भी जुड़े जैसे कि राजन जी महाराज जो सिर्फ मुझे ही फॉलो करते हैं। फिर कंटेंट और क्रिएटिविटी को लेकर और जिम्मेदारी बढ़ गई। लोगों को लगता है कि मैं जो भी बोलूंगा उससे समाज में फ़र्क पड़ेगा। मेरी आवाज सुनकर बहुत से लोग छठ और विदेशों से गाँव आ गए। जिनके अपनों से अनबन थे, गाँव के जड़ से टूट गए थे वो जुड़ गए। भोजपुरी में सिर्फ वल्गैरिटी से ही पॉपुलैरिटी नहीं है। लोग अच्छा भी सुनना चाह रहे हैं। लोग शेयर भी कर रहें है और रिलेट भी।
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Ques:- अपनी विधा और ‘हम बोलतानी’ टीम के बारे में बताइए-
पंकज :- जब मैंने कंटेंट पब्लिश करना शुरू किया उस वक्त भोजपुरी में मैंने पहला ऐसा प्रयोग किया था। आज बहुत से क्रिएटर ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं। हमें खुशी है कि लोग कुछ अच्छा करने की कॉपी कर रहे हैं। मैं भाव विधा पे काम करता हूँ। इमोशन को रिकॉर्ड करता हूं।
हमारे पास आज ‘हम बोलतानी’ की एक टीम है जिसमें मैकश, सचिन सिंह और सत्यम जैसे कमाल के लेखक जुड़े ये वो लोग हैं, जो भोजपुरी में कुछ अद्भुत करने के लिए तत्पर हैं। इनके वजह से ये दिल का धागा जुड़ा हुआ है सुनने वालों से। कमाल की बात ये है कि ये लोग नौकरी पेशेवर होने के बावजूद भी समय निकाल कर लिखते हैं और ये सब मुमकिन हो पाया है तो सिर्फ व्यूअर के प्यार से ।
Ques:- तो आप कहाँ तक ले जाना चाहते हैं इस जर्नी को ?
पंकज :- आज हमें लाखों की संख्या में गांव की पगडंडियों से लेकर शहर के एलीट वर्ग तक हमें लोग सुन रहे हैं। सपना यही है कि एक दिन इसी अंदाज और भावना को लाखों लोगों के सामने बोलूं। विदेशों में भी शो करूं जैसे हिंदी जगत के आर्टिस्ट करते हैं। एक स्टीरियोटाइप को तोड़ना है जो कहते हैं कि भोजपुरी में कुछ नया नहीं होता।
‘हम बोलतानी‘ की टॉप रचनाएँ जो हैं सबकी फेवरेट :
यहाँ पर ‘हम बोलतानी’ के पेज से कुछ चुनिन्दा रचनाओं को दिया जा रहा है, आप इसे देख/पढ़ सकते हैं और इसके शब्दों की गहराइयों को महसूस कर सकते हैं-
माई माई रटत रहबऽ
माई ना लउकी ऑटो में,
माई का रहे पता चली
जे दिन माई टंगा जाई फोटो में,
याद रखिहऽ सय बात के, एगो बात कहीं !!
एकदिन पइसा तऽ रही, लगे माई ना रही…
आज जवान का भइलऽ
छोड़ देलऽ माई बुढ़ हो गइल बिया !!
सांच कहीं तऽ अब दिल्ली ना,
माई दूर हो गइल बिया…
माई ना दोबारा आई
निहोरा केतनो करबऽ
घर तऽ भर लेबऽ
घर में, माई के जगह कहाँ भरबऽ !!
– मैकश ‘हम बोलतानी‘
कहियो फुर्सत में बईठ के
अपना बाबू जी से पुछब,
कि आहो बाबू जी, बतावा ना?
तू कइसे घर चलावत रहलऽ !!!
तर तरकारी – दाल रोटी
दूनो बेर खिआवत रहलऽ….
पाल पोस के बड़हन कईलऽ
कइसे तू पढ़इलऽ लिखइलऽ !!
कइसे मन मना लेलऽ, ना कुछु कहलऽ
हमनी के पूरा करे में, केतना अधूरा रहलऽ
कपड़ा लाता, दवाई बीरो ला
कहाँ से रोपया जुटावत रहलऽ …
आहो बाबू जी, बतावा ना?
तू कइसे घर चलावत रहलऽ ….
-सत्यम कुमार ‘हम बोलतानी‘
तहरा का लागत बा परदेसी?
कि तूँ ओसही लवट जईब गाँवे
जइसन आईल रहs?
अब लवटल तहरा बस के नईखे रह गईल हो।
आस राख़ बाकी, तहारा से शहर ना छोड़ाई।
गाँवे का छोड़ले बाड़, का जोड़ले बाड़?
तहरा से बेसी के जानत होई?
दू दिन खाती अइब तबो गमछी, चप्पल तक
लावे के परत बा तs एही से अनुमान लगा ल कि
तूँ गाँव के कातना रह गईल बाड़?
जइसे लईकीन के नईहर माई बाबू के जिनगी भर होला
ओसही लाइको के गाँव, माई बाबू तक रह जाई हो परदेसी?
– सचिन सिंह ‘हम बोलतानी‘
एगो लइका रहे
एगो उमर के जमाना रहे,
कमाके बाबूजी के सिरहाने
पूरा दुनिया !! रख देबे के सपना रहे…
जिद में आके केहू से लड़ीया जात रहे,
जब थाक जाए तऽ
माई के आँचर में भुला जात रहे…
सब धइल के धइल रही जाला !!
जिनगी पड़ जाए जेकरा पाले…
समय और जिम्मेदारी गते गते
लइकन के मुस्कान खा जाले…
अब ना सवख, ना ओकर थाह पता बा !!
हम खोज रहल बानी कहिये से
उ बचपन के
लइका कहाँ नापाता बा !!!
– मैकश ‘हम बोलतानी‘
बाबू जी काहे ना बन पवले माई के तरह
या हमनी के ना बुझनी जा
बाबू जी के, बाबू जी के तरह…
आखिर काहे मन अझूरा जाला इ कहे में कि कुछ ठीक नइखे लागत…
आज.. बिहाने के चाय ब्रेड खइले बानी,
माई से कहे में कवनो हिचकिचाहट ना होला…
बाबू जी कबो रोकले ना,
उंकरो मन करेला कि कहती
का हाल बा बाबू जी !!
सब ठीक बा नू !!
शायद ऐहि के इंतजार रहऽल पूरा उमर
एगो छत कबले ढकी हमनी के !!
लेकिन छत के ढके खातिर ऊपर दू तल्ला बनावे के पड़ेला….
अब समय आ गइल बा कि
दू तल्ला बनल जाव,
बाबू जी के छाँव बनल जाव….
– पंकज शुक्ल ‘हम बोलतानी‘
बेटी- टाटी क़े पक्ष क़े जानल चहल हो आज लें ।
शरीर तनी लम्बा का भईल? सभे क़े निगाह बाउर हो गईल।
माई से भाई तक सभे रोके टोके
लाजवावे आ तोपे में लाग गईल।
बाले उमीर में आताना बांध दिहल गईल कि
उ शिक्षा, ज्ञान से कतनो बाधा काटस
तबो गोड़ अझुराइल रह जाता।
लईकीन क़े सेयान भईल कवनो
नया घटना त ह ना?
तबो जबाना ई एहसास जरूर करा देला कि
सेयान होखल बाउर लागे लागेला।
नारी पे तs खूब मोट मोट किताब लिखाईल
बाकी जाने-बुझे क़े प्रयास अभीओ अधूरा बा।
– सचिन ‘हम बोलतानी‘
ये थी कुछ चुनिन्दा रचनाएँ, आपकी फेवरेट कौन सी है हमें कमेंट में जरूर बताएं! आप ‘हम बोलतानी‘ के इन्स्टाग्राम और यू ट्यूब पेज से जुड़ सकते हैं!
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आप भोजपुरी भाषा के बारे में विकिपीडिया पे भी पढ़ सकते हैं!
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